समय साहस देता है। अब यह लेनेवाले पर निर्भर है कि उसे दुख झेलने का साहस चाहिए या दुख से उबरने का। कुछ परिस्थितियों में तो समय ख़ुद ही समाधान होता है। जैसे धूप में जलने वालों के लिए रात, रात में ठंड से कांपने वालों के लिए दिन और बरसात में छत से टपकती बूंदें जमा करने वालो के लिए पतझड़। आपदा सबके लिए समान नहीं होती। लाकडाउन को ही देख लो। जो फेंकना पड़ सकता था वह भी बिक रहा है।
झोले की शकल की लकड़ी की उस तख़्ती ने जब काग़ज़ का रूप धारण किया तो यह अनुमान लगाना मुश्किल था कि एक दिन वही तख़्ती गैजेट का रूप धार वापस आ जाएगी। इस बीच कितने काग़ज़ काले हुए और कितनी स्याहियां ख़र्च हुईं।
हमारे उस्ताद मैलाना रिज़वान सलफी़ साहब ने तीन भाषाओं में लिखना सिखाया था। उर्दू तो बहुत लिखा, अंग्रेज़ी भी लिखते रहते हैं और अब आज इस तख़्ती-नुमा गैजेट पर हिंदी लिखते हुए हर वह शाम बहुत याद आ रही है जब अगले दिन मकतब की छुट्टी नहीं होती थी। लिखी हुई तख़्ती को पहले धोते फिर मिट्टी का हल्का लेप लगाकर सूखने के लिए रख देते। यह गैजेट भी तो रोज़ चार्ज करना पड़ता है।
पिछले ग्यारह वर्षों में फ्रीलांसर ने काग़ज़ से पोर्टल तक का सफ़र तय करते हुए उर्दू अंग्रेज़ी और अभी शीघ्र ही अरबी में पत्रकारिता को एक नया आयाम देने का प्रयास किया है। इसे व्यवसाय न बनाना पहली नज़र में इसकी एक कमी महसूस होती है परन्तु अब लगता है यही इसका प्लस पॉइंट है।
उंगलियां क़लम हैं और रगों में दौड़ता हुआ ख़ून स्याही का काम करता है। जैसे अल्लाह का हक़ अदा करने के लिए इबादत करते हैं उसी तरह ज़मीर की आवाज़ पर उंगलियां चला लेते हैं। व्यवसाय के लिए अल्लाह ने हमारी दुनिया में बेहिसाब चीजें बनाई हैं, वही ख़रीदने-बेचने के लिए काफ़ी हैं। दिल तो एक ही है आस्था और प्रेम के लिए, दिल बनाने वाले से अपने दिल का कनेक्शन जोड़े रखने के लिए। इसी कनेक्शन से मनुष्य की फंक्शनिंग आर्डर में रहती है। फिर इसका सौदा क्यूं।
आज से हम हिंदी में भी अपनी बात कहेंगे। फ़्रीलांसर के माध्यम से अपने ज़मीर की आवाज़ आप तक पहुंचाएंगे। अल्लाह से दुआ है वह तख़्ती वाली मासूमियत इस गैजेट के साथ भी बाक़ी रहे और फ्रीलांसर के पहले दिन मन में जो इख़लास था वही आखि़री दिन तक रहे।
यह आरम्भ समय की आवश्यकता है, बधाई हो.