जिहाद की परिभाषा

फोवाद अह़मद

इस्लाम अम्न,शांति और धैर्य का नाम है। हत्या, दंगा और आतंक से इस का दूर का भी कोई सम्बन्ध नहीं। अत: इस्लाम किसी इंसान के नाह़क़ क़त्ल को संसार के संपूर्ण मनुष्यों की हत्या के समान बताता है। और किसी एक आदमी को क़त्ल होने से बचा लेने को दुनिया के तमाम लोगों को ज़िन्दगी देने के जैसा बताता है।
इस्लाम का एक शब्द “जेहाद” है। जिसे बहुत सारे लोग ऐसा अर्थ देते हैं जो इस्लाम शब्द के ही मुखा़लिफ है। वास्तव में वे जेहाद की सही परिभाषा नहीं जानते।

जेहाद अरबी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है किसी भी कार्य के लिए भारी संघर्ष करना, किसी भी अरबी डिक्शनरी में हम देखें यही अर्थ मिलेगा। उर्दू में बोला जाने वाला शब्द “जिद्दो-जहद” में मौजूद “जहद” शब्द इसी जेहाद के समान है। जो हर प्रकार की कोशिश के लिए प्रयोग किया जाता है।
इससे स्पष्ट होता है कि जेहाद केवल लड़ाई झगड़े और मार पीट के लिए संघर्ष करने को नहीं बोला जाता बल्कि हर तरह की भारी कोशिश के लिए इस शब्द का प्रयोग उचित है।

इस्लाम में जिस जेहाद या संघर्ष को हबादत या नेक कार्य कहा गया है वह कई प्रकार के हैं जिनमें सबसे बड़ा जेहाद अपने आप को क़ाबू में करना है अर्थात् मन में पैदा होने वाली बुरी चाहतों से बचने का पूरा प्रयास,अपने क्रोध को पी लेना और हर प्रकार की कठिनाई पर सब्र करना। इसी प्रकार यदि कोई आतंक तथा दंगा -फसाद करता है तो उसे रोकने का पूरा संघर्ष करना भी जेहाद है। दुश्मन अपनी शरारत और आतंक से नहीं रुकता तो ऐसी स्थिति में अपने बचाव के लिए उस से लड़ना अन्तिम चारा है। इस्लाम में इसे “क़ेताल” कहा जाता है। जैसे अल्लाह ने कहा:

*وَقَاتِلُوْا فِيْ سَبِیْلِ اللّٰهِ الَّذِیْنَ یُقَاتِلُونَکُمْ وَلَا تَعْتَدُوْا۔۔۔*( البقرۃ: 190)

अर्थात अल्लाह के रास्ते में उन लोगों से क़ेताल करो जो तुम से लड़ें और ज़ुल्म व ज़यादती ना करो।

जेहाद का काम एक मुस्लिम की ज़िन्दगी में सदैव जारी रहता है। और क़ेताल एक मजबूरी होती है। और यह कोइ आतंक अथवा फसाद करने के लिए नहीं बल्कि उसे दबाने के लिए होती है। क़ुरआन मजीद में जहां भी क़ेताल का उल्लेख है वह इसी पृष्ठभूमि में है। जैसे अल्लाह का कथन है।

*وَقَاتِلُوْھُمْ حَتّٰی لَا تَکُوْنَ فِتْنَة…* (البقرة: 193) (الأنفال:39)

उन काफिरों से युद्ध लड़ो जब तक तक फित्ना समाप्त ना हो जाए।

दूसरी जगह अल्लाह ने इसके उद्देश्य को बताते हुए कहा है कि:

*وَلَوْلَا دَفْعُ اللّٰهِ النَّاسَ بَعْضَھمْ بِبَعْض لَفَسَدَتِ الْأَرْضُ…* (البقرة: 251)

अर्थात: यदि अल्लाह कुछ लोगों में कुछ को कुछ के द्वारा ना दबाता तो पृथ्वी पर फसाद पैदा होता।

यह भी एक संघर्ष का कार्य है इसलिए इसे भी जेहाद कहा जा सकता है। परन्तु आज कल जेहाद को केवल लड़ाई के अर्थ के लिए विशेष माना जाता है। जो कि बिल्कुल ग़लत है।

वर्तमान काल में मुसलमानों की जितने भी जेहादी संगठन हैं इनको इस्लाम से नहीं जोड़ना चाहिए क्योंकि इनका इस्लाम से कोई संबंध नहीं। इस्लाम का वह जेहाद जो क़ेताल के अर्थ के लिए उचित होता है उस के अपने क़ानून हैं।

यह उस समय हो सकता है जब दूसरा देश हमारे देश पर आक्रमण कर दे परन्तु उसके के लिए जनता नहीं बल्कि हुकूमत ही ज़िम्मेदार होगी।
(इस्लामी जेहाद वह़ीदुद्दीन खा़न पेज:30)

अन्यथा क़ुरआन में अल्लाह हमें अादेश देता है कि हम क़ुरआन की बातें फैलायें और इसी के द्वारा जेहाद करें। उसका कथन है:

*فَلَا تُطِعِ الْکَافِریْنَ وَجَاھِدْھُمْ بِه جِھَادًا کَبِیْرًا* (الفرقان: 52)

अर्थात अल्लाह को ना मानने वालों के पीछे मत चलो। और उनसे क़ुरआन के ज़रिये महा जेहाद करो।

और हदीस में है कि:

*المجاهد من جاهد نفسه في طاعة الله…* (رواہ البیھقي في الشعب (10611) والترمذی (1621)وقال حدیث حسن صحیح)

अर्थात:असली मुजाहिद वह है जो अल्लाह का कहा मानने में अपने आप से जेहाद करे।

हदीस में दूसरी जगह माता पिता की सेवा को भी जेहाद बताया गया है। रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा:

*ففیھما فجاھد۔۔۔* (صحیح البخاری: 3004)

यानी माता पिता में जेहाद करो।

यह सब अपने आप से जेहाद करने के बाद इस्लाम के सबसे बड़े जेहाद हैं। जिससे स्पष्ट होता है कि जेहाद के शब्द को तलवार और लड़ाई के साथ जोड़ना सही नहीं है। वह जेहाद जो क़ेताल के अर्थ के लिए है, केवल समय की एक आवश्यकता होती है। जो दंगा फसाद ख़त्म करने के लिए मजबूरी में किया जाता है।

अल्लाह से दुआ है कि वह हमें जेहाद की सही परिभाषा को समझने की शक्ति प्रदान करे।आमीन

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