इन्टरमीशन (फिल्मी मध्यावकाश)

फोवाद अह़मद

लेखक: काशिफ शकील

अनुवाद: फोवाद अह़मद


आज फ़िर मन उदास था। समुद्र तट की सैर के लिए निकला। पर उदासी की आग समुद्री जल से ठण्ड नहीं हुई। लांग ड्राइविंग के लिए सोचा, परन्तु मूड ना बन सका। पास के एक रेस्टोरेंट में जाकर बैठा और काफी आर्डर की। इतने में कालेज का एक पुराना दोस्त दीपक मिल गया। दीपक कालेज में हिन्दी स्ट्रीम से था और मैं अरबी,परन्तु अंग्रेज़ी का लेक्चर हम दोनों साथ अटेंड करते। मेरे चेहरे की निराशा देख कर उसने ख़ैरियत पूछी। मैंने दिल का ह़ाल बता दिया। तय हुआ कि मूवी देखने चलते हैं शायद कि दिल बहल जाए। अत: हमने सिनेमाघर की राह ली। दीपक ने बताया कि कल एक प्रसिद्ध सुपर स्टार की नई फिल्म रिलीज़ हुई है उसी को देखते हैं। मैंने सहमति में सिर हिला दिया।
बालकनी की सीट थी, दीपक बड़ी रूचि से फिल्म का मज़ा ले रहा था। हर नए डायलॉग पर वाह वाह की आवाज़ और हर अाकर्षक दृश्य पर तालियाँ।

सभी दर्शक ध्यानपूर्वक मूवी देख रहे थे। परन्तु मैं ऊब रहा था। फिल्म का रबर उदासी की रेखा मिटाने में असफल रहा। मैं बोर होता रहा यहां तक कि फिल्म का मध्यावकाश (Intermission) हुआ। मैंने दीपक से कहा “यार चलो घर चलते हैं, फिल्म ख़त्म हो गई”।

“जब इतना देख चुके हैं तो पूरा देख कर ही जाएंगे। जब नहीं देखना था तो आना ही नहीं चाहिए था” दीपक ने क्रोधित रूप में कहा।

“मुकम्मल देखना अनिवार्य है क्या”? मैं भी आक्रोशित हो गया।

“क्यों नहीं! अभी असली कहानी बाक़ी है। हीरोइन गुन्डों के चपेट में है। हीरो की बहन बीमार है। उसके मानने वाले अत्याचार से पीड़ित हैं। हीरो स्वयं विलेन (Villain) की क़ैद में है। ऐसी स्थिति में मूवी छोड़ कर घर चला गया तो मुझे नींद नहीं आएगी।” दीपक ने समझाते हुए कहा।

दीपक की यह बात सुनकर मेरे हृदय में एक नया विचार आया। मैंने कहा “यार दीपक! तुम रोज़ ऐसे ही आधी-अधूरी कहानी देखते हो। प्रत्येक दिन आधी फिल्मों का दर्शन करते हो। फ़िर तुम्हें नींद कैसे आ जाती है”?

दीपक ने आश्चर्य चकित होकर कहा: ” वे कैसे”?

अब समझाने की मेरी बारी थी। मैंने कहा: “तुमने कितनी बार देखा है कि एक अत्याचारी अत्याचार करते करते तथा एक उत्पीड़ित ज़ुल्म सहते सहते प्राण त्याग दिया। दोनों में से किसी को कोई बदला नहीं मिला। हमारे भूमीय समाज का हीरो गुन्डों की क़ैद में मर जाता है। न्याय की आवाज़ दबा दी जाती है। विलेन अबोधों के शवों पर चढ़ कर अपनी जीत का जश्न मनाता है। क्या ये फिल्में अधूरी नहीं? क्या ज़ुल्म और न्याय के बीच मृत्यु का मध्यावकाश नहीं आ रहा है? अाख़िर हीरो कब विजयी होगी? ऋणात्मक भूमिकाओं को कहां उनके करतूतों का दण्ड मिलेगा? नि:सन्देह मृत्यु के इन्टरमीशन पर फिल्म समाप्त नहीं होती। बल्कि मुख्य कहानी का उसके बाद आरम्भ होता है। जहां सबको एक नई दुनिया तथा नया जीवन प्राप्त होता है। वहां प्रत्येक व्यक्ति के साथ न्याय होगा। अत्याचारियों के लिए नर्क तथा कल्याणकारियों के लिए जन्नत (स्वर्ग) होगी। हीरो विलेन पर हंसेगा। गुन्डे अपने करतूतों पर लज्जित होंगें। और यही आख़िरत (परलोक) का दिन होगा। जिसका तुम इनकार करते हो।”।

“वास्तव में” उसने सिर हिलाते हुए कहा। और मेरे साथ घर चलने के लिए बाइक पर बैठ गया।

“फिल्म पूरी नहीं करोगे”? मैंने इग्नीशन की (Ignition key) घुमाते हुए कहा: “नहीं! अब मुझे मृत्यु के मध्यावकाश के बाद के जीवन की चिंता हो रही है।” थोड़ी भावनात्मक लय में उत्तर दिया।

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