अभी चंद रोज़ पहले, पूरे ब्रिटेन में मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर अज़ान की परमीशन पहली बार दी गयी है? ब्रिटेन सबसे अधिक प्रदूषण मुक्त देशों में से एक है। वहाँ के लोग सबसे अधिक माॅडर्न, सोफिस्टिकेटेड और शांतिप्रिय हैं।
दरअसल अज़ान और कुछ नहीं, नमाज़ का वक्त होने की सूचना मात्र है, जिससे किसी काम धंधे या नींद में सो रहे लोगों की कानों तक यह सूचना जाए और वह तय समय पर नमाज़ अदा कर लें।
पहले मस्जिदों की किसी ऊँची जगह पर खड़े होकर तेज़ आवाज़ में यह आज़ान दी जाती थी पर इंसान की आवाज़ की एक सीमा होती है और वह 40-50 मीटर के दायरे में सिमट कर रह जाती है और दूर दराज़ के लोगों को नमाज़ के वक्त का पता नहीं चलता था।
बचपन में हम जैसे खुद मस्जिदों के सामने खड़े होकर अज़ान होने का इंतज़ार करते थे, अज़ान होते ही दौड़ कर घर पहुँचते थे तब दादी-नानी रोज़ा खोलती थीं।
चुँकि नमाज़ और रोज़ा में वक्त की बहुत पाबंदी होती है, थोड़ी देर थोड़ा पहले होने पर रोज़ा मकरूह हो जाता है, मस्जिद में नमाज़ के लिए जमातें खड़ी हो जाती हैं, और देर हुई तो नमाज़ें कज़ा हो जाती हैं इसलिए लोगों को समय की सूचना देने के लिए अज़ान की व्यवस्था है और यह लाउडस्पीकर से हो तो अधिक दूर तक लोगों को यह सूचना पहुँचती है लोग लाभान्वित होते हैं।
सूचना देने की ऐसी व्यवस्था हर जगह है, रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन से लेकर तमाम प्रशासनिक घोषणाएँ और सूचनाएँ भी उसी लाउडस्पीकर से दी जाती है।
तकनीक के दौर में यह तकनीक का तमाम अन्य जगहों की तरह “अज़ान” में भी लाउडस्पीकर का किया जाने वाला प्रयोग है जिसे आजतक “योगी जी” तक ने नहीं रोका। योगी जी को धन्यवाद।
पर भारत में लाउडस्पीकर पर अज़ान से अब “जावेद अख्तर” को दिक्कत होने लगी है, वह इस पर प्रतिबंध की माँग कर रहे हैं।
सोनू निगम को भी “अज़ान” से दिक्कत थी जो दुबई जाकर खत्म हो गयी और वह वहाँ परिवार सहित रहते हुए अरबी में कुरान की आयतें गुनगुना कर वीडियो पोस्ट कर रहे हैं।
दरअसल, ऐसे लोग दोगले होते हैं, इनको लाउडस्पीकर के अज़ान से दिक्कत नहीं होती बल्कि यह लोग अपने फिल्मी कैरियर को देश के कट्टरपंथी बहुसंख्यकों से बचाने के लिए ऐसे बयान देते रहते हैं। जिससे इनको उनके द्वारा बहिष्कृत ना किया जाय।
ज़िन्दगी भर आशिकी माशिकी, मार धाड़, हिंसा, बलात्कार पर फिल्में लिखकर कर 3-3 घंटे थिएटर में हाईवोल्टेज साउंड सिस्टम के सहारे अपनी फिल्मों की कानफ़ाड़ू स्क्रीनिंग करने वाले जावेद अख्तर को 3 मिनट की लाउडस्पीकर पर अज़ान से दिक्कत है।
अपने गीतों को चौराहे चौराहे, डीजे, आर्केस्ट्रा और लाईव कन्सर्ट के सैकड़ों हाईवोल्टेज कानफाड़ू लाऊडस्पीकर पर रात रात भर बजते देखना जावेद अख्तर को तो पसंद है पर 3 मिनट की अज़ान इनको लाउडस्पीकर पर पसंद नहीं।
इसीलिए ऐसे लोगों को दोगला कहता हूँ।
हाँलाकि वह सभी धार्मिक कार्यक्रमों में लाऊडस्पीकर पर प्रतिबंध की माँग करते तो फिर भी मैं उनका समर्थन करता पर इनकी खुन्नस सिर्फ़ अज़ान से है तो उसका कारण है।
कारण यह है कि नाम के मुसलमान ऐसे “मुनाफ़िकों” को “अज़ान” अंदर तक चोट मारती है, इनको अज़ान सुन कर बेचैनी होती है, इनकी आत्मा इनको झगझोरती है, अज़ान से इनकी कानों में नमाज़ के वक्त होने का संदेश इनके कानों में गरम शीशे की तरह उतरता है, इनको अपने धर्म से दूर जाने पर शर्मिंदगी होती है।
दरअसल अज़ान जावेद अख्तर को उर्दू अदब की दो अज़ीमुश्शान शख्शियत अपने बाप “जाँनिसार अख्तर” और माँ “साफिया अख्तर” की दी तालीम से दूर होने पर धिक्कारती है, उर्दू की शानदार शख्सियत मुज़्तर खैराबादी जिन पर उर्दू गर्व करती है उनके पोते होने का “अज़ान” एहसास कराती है, इसलिए इनको 3 मिनट की अज़ान तो नहीं पसंद बाकी सारी हाईवोल्टेज साउंड सिस्टम की कानफाड़ू आवाज़ें इनको पसंद हैं।
हर साल हाई वोल्टेज स्टीरियो साउंड सिस्टम की चीखती गीतों के बीच फिल्मी दुनिया के लोगों के साथ दिनभर होली मिलन समारोह करने वाले जावेद अख्तर को 3 मिनट की अज़ान से बेचैनी होती है।
दरअसल, जावेद अख्तर जैसे लोग जो कमाल अमरोही के रहमों करम पर फिल्मों की चकाचौंध और शोरगुल में दाखिल हुए, जो कैफ़ी आज़मी की शागिर्दगी में फिल्मों में लिखने का हुनर सीखे। मुंबई की सड़कों पर रात गुज़ारने वाले जिन जावेद अख्तर को इनकी पहलो पत्नी हनी ईरानी इनके सर पर छत देती हैं, वह इन सबके बेवफा हैं।
इनकी गरीबी और मुफ्लिसी में जिस हनी ईरानी ने इनको सहारा दिया और अपनी बहन “मेनका ईरानी” के पति फरहान खान (फरहा खान और साजिद खान के माता पिता) के जूहू स्थित घर पर कमरा दिलवा कर मुंबई में इनको छत दिया उस हनी ईरानी को भी इन्होंने नहीं बख्शा और धोखा दिया।
जावेद अख्तर एक एहसानफरामोश और बेवफा शख्शियत के मालिक हैं जो कैफ़ी आज़मी का बंग्ला, हवेली और बड़ा नाम देखकर दो छोटे छोटे बच्चों की माँ हनी ईरानी को तलाक देकर एकलौती शबाना आज़मी से शादी कर लेते हैं।
दरअसल, जावेद अख्तर एक मौकापरस्त इंसान हैं इसीलिए राज्यसभा के अपने आखिरी संबोधन में भगवा एजेन्डे के पक्ष में आकर असदुद्दीन ओवैसी को तमाम लानत मलानत करते रहे, ओवैसी को किसी शहर की किसी गली का नेता बताते रहे कि इससे खुश होकर मोदी सरकार इनको फिर राज्यसभा में मनोनित कर दे। पर उनका यह प्रयास विफल रहा।
अज़ान को लेकर उनका ताज़ा बयान भी उनके किसी मौकापरस्ती के कारण ही होगी वर्ना तीसरा क्या कारण है कि अपनी पूरी ज़िन्दगी हाईवोल्टेज डोल्बी साउंड सिस्टम और म्युज़िक थिएटर, डबिंग थिएटर, कैमरा, लाइट, ऐक्शन के बीच गुज़ारने वाले जावेद अख्तर को 3 मिनट की अज़ान से दिक्कत ?
कान में डायपर ठूस लो जावेद अख्तर, पता है सुबह उतरती नहीं होगी, नशे में अज़ान कचोटती होगी। आप डायपर ठूस कर सोते रहो, इस देश में लोग एक दूसरे का सहयोग करना जानते हैं, एक दूसरे के धार्मिक कृत्य से होने वाली असुविधा को बर्दाश्त करना जानते हैं।
Bahut achi koshish hai Good 👍