निगाहों में सभी की तेरे जैसा हो गया हूँ मैं

सहर महमूद कवितायें

निगाहों में सभी की तेरे जैसा हो गया हूँ मैं

भरोसा कर के तुझ पर झूठे! झूठा हो गया हूँ मैं।


मेरा माज़ी भी मेरे हाल की तकज़ीब करता है

मैं पहरों सोचता हूँ ख़ुद भी कैसा हो गया हूँ मैं।


मुझे मालूम है मैं किस क़दर टूटा हूँ अंदर से

बज़ाहिर सब को लगता है कि अच्छा हो गया हूँ मैं।


वो जिस की दोस्ती की लाज रक्खी हर तरह मैं ने

छुपाने में उसी का नक़्स, रुस्वा हो गया हूँ मैं।


तबीबों ने मरज़ अल्लाह जाने क्या बताया है

तुम्हारे आने से लगता है अच्छा हो गया हूँ मैं।


हूँ बेटों की निगाहों में बड़ा ही सख़्त जाँ लेकिन

लगा नज़दीक-ए मादर आके, बच्चा हो गया हूँ मैं।


सिवा अल्लाह के कोई नज़र आया नहीं मुझ को

मुसीबत में सहर! जिस वक़्त तन्हा हो गया हूँ मैं।

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