हर तरफ़ एक अज़ीयत का है रोना यारो
बन के आया है मुसीबत ये कोरोना यारो।
न तो बाज़ार लगी हैं न ही दफ़्तर चालू
और सरकारी हिदायात समय पर चालू।
रुक गई है यहां हर घर की कमाई देखो
पढ़ने वालों की भी होगी न पढ़ाई देखो।
हर तरफ़ मुल्क में सरकार का जनता कर्फ़्यू
सिर्फ़ सड़कों पे नज़र आते हैं बैठे उल्लू।
बंद हैं पार्क सभी और सिनेमा घर भी
कैसे भाएगा भला हम को ये अपना घर भी।
न कोई दोस्त न मेहमान इधर आता है
घर हमें जेल की मानिंद नज़र आता है।
दुनिया वालो! बेहयाई का नतीजा शायद
ये करोना है बुराई का नतीजा शायद।
पास आता है कोई अब तो बुरा लगता है
यार इंसान भी इंसान का क्या लगता है।
हर तरफ़ ज़ुल्म सितम का है बसेरा यारो
गोया दुनिया है ये शैतान का डेरा यारो।
किस ने सोचा था भला हम पे वो दिन आएगा
जब मुसलमान ही मस्जिद नहीं जा पायेगा।
न निदामत के दो आंसू ही बहा पाएगा
शर्म से सर भी नहीं अपना झुका पाएगा।
चुग्ल गी़बत व खुराफा़त में पलने वालो
ज़लज़ला से न सुनामी से दहलने वालो।
ए करोना ए अबाबील के मारे लोगो
होश में आओ न जन्नत से उतारे लोगो।
हर बुराई नज़रंदाज़ कहां होती है
रब की लाठी में भी आवाज़ कहां होती है।
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