दरबदर मज़दूर की तक़दीर सोच

फ़ैज़ान असअद कवितायें

दरबदर मज़दूर की तक़दीर सोच

मर गया है क्यों भला रह्गीर सोच


आलम ए पज़मुर्दगी के दरमियाँ

हौसलों से पुर कोई तहरीर सोच


आके मक़तल में तज़बज़ुब किस लिए

ख़्वाब देखा है तो फिर ताबीर सोच


एक मकान ए मुख़्तसर से ख़ुश न हो

कैसे होगी यह जमीं तस्ख़ीर सोच


ज़ुल्म सहना ज़ुल्म की ताईद है

कैसे टूटे ज़ुल्म की ज़ंजीर सोच


बेसबब तख़रीब ए गुलशन रोक दे

फूल हो जाएँ अगर शमशीर सोच


तू निगाहों से चुराता है सुकूं

यह ख़ता है लायक़ ए ताज़ीर सोच


लाश बच्चे की लिए साकित है वो

क्यों न रोया साहिब ए तस्वीर सोच


सब तो अपने थे अदू कोई न था

कर दिया पैवस्त किसने तीर सोच


शिकवा ए इफ़लास असअद छोड़ कर

क्यों बिकी अजदाद की जागीर सोच



दरबदर : इधर उधर की ठोकर खाने वाला, बेघर
रह्गीर : रास्ता चलने वाला, मुसाफ़िर
आलम ए पज़मुर्दगी : मायूसी की हालत में
पुर : भरी हुई
मक़तल : जंग का मैदान
तज़बज़ुब : शक में पड़े रहना
तस्ख़ीर : फ़तह करना
ताईद : तरफ़दारी
तख़रीब : बर्बाद करना
ताज़ीर : सज़ा
साकित : चुप
अदू : दुश्मन
पैवस्त : आरपार कर देना, घोंपना
शिकवा : शिकायत
इफ़लास : फ़कीरी, कंगाली
अजदाद : पूर्वज

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