लॉक डाउन के बाद की दुनिया पर एक नज़र

अब्दुल बर् मदनी कवितायें

दुनिया! तेरी आगोश में रानाई बहुत है।

पर तल्ख़ हक़ीक़त है तू हरजाई बहुत है।


क्या बात है! दीवानों से क्यूँ फेर ली नज़रें?

इंसान के करतूत पे शर्म आई बहुत है।


दुनिया में ख़ताकार तो हैं और भी लेकिन

इंसान ने गु़र्बत की सजा़ पाई बहुत है।


जब कै़द हुआ आला-ए-तस्वीर में मज़दूर

यह राज़ खुला भूक में रुस्वाई बहुत है।


गर मौत मुक़द्दर है तो फिर अपना वतन हो

अब फ़िक्र किसे राह की लंबाई बहुत है।


आँखों में समाया था नदी पार का मंज़र

तैराक यह कहता रहा गहराई बहुत है।


ख़बरों में हक़ीक़त का सिरा कैसे मिलेगा

है मत्न ज़रा, हाशिया आराई बहुत है।


नफ़रत है रवादारी व तहजी़ब की का़तिल

दुनिया मगर इस ज़हर की शैदाई बहुत है।


क्या दिन थे कि क़दमों के लिए तंग था सहरा

है पाँव में ज़ंजीर तो अंगनाई बहुत है।


दुनिया, जिसे सौ नाज़ थे तस्खी़र-ए-जहाँ पर

नादीदा सी मख़्लूक़ से घबराई बहुत है।


ऐ अहल-ए-जहाँ! रहम करो अहल-ए-जहाँ पर

खा़लिक़ को यह बंदों की अदा भाई बहुत है।

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