ज़िंदगी भर दौड़ता है बैठ जा
ग़म कहाँ कब बोलता है बैठ जा।
पहली बारिश देख कर बरसात की
जाने क्या तू सोचता है बैठ जा।
इस क़दर लेकर चला बार-ए-हयात
रास्ता ही बोलता है बैठ जा।
पांव खींचा है तेरा अहबाब ने
क्यूं सहारा ढूँढता है बैठ जा।
तश्त में लाशें सजी हैं ख़ून है
यह सियासी नाश्ता है बैठ जा।
झूट की दुनिया में सब उलझे हैं, तू
बात सच्ची बोलता है बैठ जा।
एक दिए ने जल के तूफ़ां से कहा
मुझ से डर के काँपता है बैठ जा।
नन्हे बच्चे को तिलावत से न रोक
कान में रस घोलता है बैठ जा।
देख असअद अजनबी एक शख़्स से
रिश्ता-ए-जाँ जोड़ता है बैठ जा।
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बार-ए-हयात – ज़िंदगी का बोझ
अहबाब – दोस्त
तश्त – सेनी, प्लेट, बर्तन
तिलावत – क़ुरान पढ़ना
रिश्ता-ए-जाँ – गहरा ताल्लुक़, जान का रिश्ता
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